भगवान शिव के गण

भगवान शिव के गण

Mar 01, 2024Soubhagya Barick

शिव जी को शमशान घाट का निवासी भी माना जाता है जो कि मनुष्य जीवन का अंतिम स्थान होता है। । कहते हैं कि भूत-प्रेत, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे सभी शिव के भक्त हैं। इसलिए उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है। भगवान शिव को अत्यंत रहस्यमय देवता माना जाता है ।

भगवान शिव को यक्ष का रूप माना जाता है। यक्ष स्वरूप दिव्य होता है। गण सदैव शिव जी के निकट रहते हैं। वे शिव जी के मित्र भी हैं और उनके अभिरक्षक भी । गणों के स्वरूप को विकृत स्वरुप माना गया है। कहा जाता है कि इनके शरीर में अस्थिपंजर नहीं होता है। इनका आकार असाधारण व अनोखा होता है। इनकी भाषा समझ में नहीं आती है । ये बस शोर करते रहते हैं।। शिव जी ही उनकी बात समझ सकते हैं। ।

शिवपुराण में उनके कुछ गणों के बारें में बताया गया है, जैसे भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, जय, विजय भृगिरिटी, गोकर्ण, घंटाकर्ण, शैल आदि को शिव का गण कहा जाता है यानि ये सभी प्रकार के लोग शिव जी के साथ रहते हैं और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं। इसके अतिरिक्त पशु, नाग-नागिन, दैत्य और पिशाच को भी शिव के गण का हिस्सा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये सभी गण धरती पर और इस पूरे ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य,प्रत्येक आत्मा , प्रत्येक जीव की खोज-खबर रखते है 

श्री गणेश जी को गणपति कहा जाता है।

इन्हें समस्त गणों का अध्यक्ष भी मानते हैं इसलिये ये गणाध्यक्ष भी कहलाते हैं।

इन्हें गजानन भी कहा जाता है  क्योंकि ये गजमुखी थे 

इसकी कथा इस प्रकार है--

एक बार माता पार्वती स्नान कर रही थी तो उन्होंने अपने पवित्र मल से एक बालक की रचना की और उस बालक को द्वार पर पहरा देने की आज्ञा दी और कहा कि किसी को भी अंदर  आने दिया जाए।  जब शिव जी वहां आए तो गणेश जी ने उनको भी भीतर नहीं जाने दिया। जिससे शिव जी को क्रोध  गया और उन्होंने बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया  जब पार्वती जी ने इसे देखा तो वह बहुत विचलित हुईं और और अपने पुत्र को पुनः जीवित करने के लिए कहा। तब भगवान शंकर जी ने अपनी भूल को सुधारने के लिए और पार्वती जी के क्रोध को शांत करने के लिए उनके सिर पर एक हाथी के बच्चे का सिर लगा दिया। कहते हैं कि वह हाथी भी भगवान शंकर का गण था।

 

गज का सिर लगे होने के कारण ही उन्हें  कहा जाता है। भगवान शिव ने उन्हें सभी गणों का अध्यक्ष बना दिया इसलिये उन्हें गणाध्यक्ष या गणपति भी कहा जाता है।

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