उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ekadashi : जानें उत्पन्ना एकादशी का महत्व और कथा

उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ekadashi : जानें उत्पन्ना एकादशी का महत्व और कथा

Mar 01, 2024Soubhagya Barick

हिन्दू धर्म के अनुसार, वर्ष भर में पड़ने वाली सभी एकादशियों का बहुत महत्व है किंतु उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ekadashi का व्रत कुछ विशेष महत्व रखता है मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।

उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ekadashi  पूजन सामग्री 

उत्पन्ना एकादशी व्रत और पूजा के लिए आपको निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता हो सकती है:

तांबे या मिट्टी का कलश, शुद्ध जल, पीतल का दीपक, घी या तेल, धूपबत्ती, अगरबत्ती, पुष्प और पत्तियां, ताजे फूल (जैसे गुलाब, गेंदे, चमेली), तुलसी के पत्ते, ताजे फल (जैसे केला, सेब, अनार, नारियल), पंचामृत, दूध, दही, शहद, चीनी, सुपारी और पान के पत्ते, अक्षत (चावल), रोली या कुमकुम, हल्दी, चंदन, लाल या पीला वस्त्र, मिठाई या प्रसाद (जैसे लड्डू, खीर), भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर

यह सामग्री आपके पूजा को सरल और शुभ बनाने में मदद करेगी। पूजन विधि और मंत्रों का पालन करके भगवान विष्णु को प्रसन्न करें।

उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ekadashi  पूजन विधि

Utpanna Ekadashi एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प लें । नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी जी की निष्ठा पूर्वक पूजन करें, कथा सुनें और सात्विक भोजन ही खाएं। सात्विक आहार के साथ ही साथ वैसा ही जीवन यापन करें।

बुरे  कर्म करने वाले, पापी व  दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये।  जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए श्रीहरि से क्षमा मांगनी चाहिये।

इन सभी को करने से जीवन में सुख , शांति व समृद्धि बनी रहती है।

उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ekadashi 2024 Date - Tue, 26 Nov, 2024

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

एक बार युधिष्ठिर जी ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि, प्रभु ! आपने हमें समस्त एकादशियों के बारे में हमें बताया है किंतु उत्पन्न एकादशी के बारे में भी  कृपा करके हमें बताएं ।

 भगवान कहने लगे कि,  हे ,युधिष्ठिर! प्राचीन काल में एक राजा था जो बहुत ही बलवान था। उसने देवताओं पर भी आतंक मचा रखा था। उसका मुरे नामक घोर पराक्रमी पैदा हुआ । उसकी इंद्रावती नाम की नगरी थी।  वह  बड़ा ही बलवान और भयानक था।  उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र,  आदित्य आदि सभी  देवताओं को पराजित करके उनके राज्यों से भगा दिया । तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा ।  कैलाशपति ने उन्हें संसार के पालक भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहा और बताया कि  विष्णु जी ही तुम्हारे सभी दुखों को दूर कर सकते हैं ।

  ऐसा वचन सुनकर सभी देवता शिव सागर में पहुंचे वहां भगवान के सामने हाथ जोड़कर के उनको प्रणाम करके बोले कि,  हे , मधुसूदन ! कृपा करके हमारी इस भयंकर दैत्य से रक्षा करें। इस दैत्य से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं। आप ही सबके पालनहार हैं । आप सर्व व्यापक हैं भगवन ! हमारी रक्षा करें।

  इस तरह से इंद्र के वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा । भगवान ने भी उसकी भयानक गर्जना सुनी । उसे सुनकर  भगवान ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। उसकी सारी सेनाओं को उन्होंने अपने सर्प के समान बाणों से भेद डाला । बहुत सारे दैत्य मारे गए।  केवल मुरे ही बचा रहा । वह अभी भी भगवान के साथ युद्ध करता रहा।

  भगवान जो भी बाण चलाते थे वह उसके लिए पुष्प सा बन जाता था। कहते हैं कि यह युद्ध लगातार 10 हजार वर्षों तक  चला । ऐसा मानते हैं कि तब थककर भगवान विष्णु  बद्री का आश्रम चले गए । वहां हेमवती नाम की सुंदर गुफा थी।  वह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वारा था  ।

  भगवान विष्णु वहां योग निद्रा की गोद में सो गए । मगर मुरे भी पीछे-पीछे आ गया था और भगवान को सोया हुआ  जानकर उन पर प्रहार  करने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्जवल कांति रूप वाली देवी प्रकट हुई ।

   देवी ने रक्षाकरी का रूप धारण किया और  मुरे को युद्ध के लिए  ललकारा । भयंकर युद्ध हुआ। देवी ने उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया ।

   जब श्री हरि योग निद्रा से उठे तो सब बातों को जानकर बहुत ही प्रसन्न हुए ।  उन्होंने देवी से कहा कि , आपका जन्म एकादशी के दिन ही  हुआ है अतः आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से समस्त विश्व में जानी जाएंगी। आपकी जो पूजा करेगा , वही मेरी भी पूजा मानी जायेगी। जो आपके भक्त होंगे वही मेरे भी भक्त होंगे  ।

उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ekadashi  के लाभ

ऐसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी Utpanna Ekadashi  के दिन विष्णुजी की पूजा करने और व्रत रखने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 इस दिन किए गए दान-पुण्य के कार्यों से साधक को कई गुना ज्यादा शुभ फल मिलता है । इस दिन भगवान विष्णुजी के साथ मां लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है जिससे व्रती पर विशेष कृपा बनी रहती है।

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