kaal bhairav

काल भैरव जयंती : जानें उनके महत्व और पौराणिक कथा

Mar 14, 2024Soubhagya Barick

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार,  प्रत्येक वर्ष , मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है । इसी माह में शिव जी ने अपना रौद्र अवतार लिया था जिसे काल भैरव के नाम से मनाया जाता है।  

यूं तो हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी का दिन कालभैरव को समर्पित है।  इसे कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है लेकिन जयंती का उपलक्ष्य मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को ही मनाते हैं।  कहते हैं कि जो भी इस दिन सच्चे मन से शिव के रौद्र  रूप काल भैरव की उपासना करता है ,  बाबा काल भैरव उसके तमाम कष्ट व  परेशानियां हर लेते हैं और उसकी हर पल  सुरक्षा करते हैं । भयंकर से भयंकर शत्रुओं से वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

भैरवनाथ को शिव जी का पांचवा अवतार माना जाता है। उपासना की दृष्टि से यह बहुत ही परोपकारी देवता हैं।

काल भैरव जी के पौराणिक कथा  -

 एक प्रचलित कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि ,  भगवान शंकर ने इसी अष्टमी के दिन  ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था । उनके ही रक्त से भैरवनाथ का जन्म माना जाता है। इसलिए इस दिन को भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाता है।

कहा जाता है कि,  जब दुनिया की शुरुआत हुई थी तो एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों के रूप को  देखकर शिव जी को कुछ तिरस्कार पूर्ण शब्द कह दिये थे । स्वयं तो शिव जी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया किंतु उसी समय उनके शरीर से क्रोध से काँपता  हुआ और एक विशाल छड़ी लिए हुए भयंकर शरीर प्रकट हुआ । क्रोधित होकर वह ब्रह्म को करने के लिए आगे आया । ब्रह्मा ने जब यह देखा तो वह  भयभीत हो गए । शंकर जी से क्षमा याचना करने पर , शंकर जी की मध्यस्थता  के बाद ही उनका वह अवतरित शरीर  शांत हो सका । 

 रुद्र से उत्पन्न इस शरीर को महा भैरव का नाम मिला । बाद में शिव जी ने उन्हें  अपनी पुरी काशी का महापौर नियुक्त किया । 

 कहते हैं कि भैरव जी की पत्नी ,  देवी पार्वती का ही अवतार हैं , जिनका नाम भैरवी है । जब भगवान शिव ने अपने अंश से भैरव को प्रकट किया तो उन्होंने माता पार्वती से भी एक ऐसी शक्ति उत्पन्न करने को कहा जो भैरव की पत्नी बन सके । तब माता पार्वती ने अपने अंश से देवी भैरवी को प्रकट किया जो शिव के अवतार भैरव की पत्नी  हैं ।

 भैरवनाथ की पूजा विशेष कर रात में ही की जाती है । भैरव अष्टमी काल की याद दिलाती है इसलिए कई लोग मृत्यु के भय से मुक्ति पाने के लिए भैरव नाथ जी की उपासना करते हैं।

 

काल भैरव अष्टककाल भैरव मंत्र

 देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥

 

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥

 

शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥

 

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥

 

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥

 

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।

मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥

 

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥

 

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥

 

 

More articles