निर्जला एकादशी - इतिहास और महत्व

निर्जला एकादशी - इतिहास और महत्व

Jun 14, 2024Cycle Care

- Meera Rai

यूं तो प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी व्रत किया जाता है। सभी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं और हरेक एकादशी का अपना अपना महत्व होता है। फिर भी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष मे पड़ने वाले इस निर्जला एकादशी का बहुत महत्व माना गया है।


एकादशी व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है क्योंकि इसे पूर्ण रूप से करने में लगभग 3 दिन का समय लग जाता है।

इस वर्ष 2024 में निर्जला एकादशी तिथि 17 जून को सुबह 4 बजकर 43 मिनट पर शुरु होने की बात कही गई है। इस व्रत का समापन 18 जून को प्रातः 6 : 24 पर माना जा रहा है। जबकि इस व्रत का पारण 19 जून को किया जाएगा।

भयंकर गर्मी में बिना जल के रहना बहुत ही दुरूह कार्य है इसलिए यह एकादशी कठिनतम व्रतों में गिना जाता है। इसी कारण जल से भरे हुए कलश को दान में देने का विधान है। कहते हैं कि जल में खड़ी हुई गाय का दान भी अत्युत्तम माना जाता है।

कथा --

इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। क्योंकि भीम ने युद्ध के पश्चात प्रायश्चित करना चाहा मगर वे जानते थे कि जल देवता व धर्म देवता भगवान विष्णु की शरण में जाने से और एकादशी जैसे कठिन उपवास करने पर सभी पापों से छुटकारा मिल जाएगा मगर वे भोजन के बिना नहीं रह सकते थे। तब उन्हें भगवान व्यास जी के पास भेजा गया।


व्यास जी ने कहा कि, " मात्र एक व्रत करने से भी तुम्हारे सारे पाप कट जाएंगे और तुम स्वर्गलोक को प्राप्त करोगे। वह है निर्जला एकादशी का व्रत। एक सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक बिना अन्न जल के रहना होगा। इसके नियम भी सख्त हैं।

पूरे ब्रह्मचर्य से रहना होगा । रात्रि जागरण करना होगा।पारण करने से पहले ब्राह्मणों को भोजन इत्यादि कराकर उन्हें दक्षिणा वगैरह देनी होगी। जिसमें जल का कलश, सोना या फिर गाय का दान करना होता है। लोग भोजन, छतरी, वस्त्र तथा जूते इत्यादि भी दान करते हैं। कुछ मिष्ठान वगैरह भी वितरण करना चाहिए। यह एक व्रत ही सभी पापों से मुक्ति दिला सकता है। अगर तुम 24 एकादशी व्रत नहीं कर सकते तो केवल निर्जला एकादशी ही कर लो तो तुम्हारे सारे पाप कर्म धुल जाएंगे क्योंकि यह अत्यन्त कठिन व्रत माना जाता है। "

भीम ने इस व्रत अनुष्ठान को पूर्ण किया था इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
कहते हैं कि इस व्रत को करने से मनुष्य के द्वारा किए हुए सभी पापों का नाश हो जाता है। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार की मनोकामना की पूर्ति होती है। शुक्ल पक्ष की एकादशी को शुभ एकादशी भी कहते हैं।

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