दशहरा का महत्त्व और पूजन विधि

दशहरा का महत्त्व और पूजन विधि

Oct 07, 2024Cycle Care

दशहरा हिंदुओं का एक महत्त्व पूर्ण त्यौहार है। इसे असत्य के ऊपर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है। दशहरा इसलिए भी मनाते हैं ताकि पूरी मानव जाति में यह संदेश जाये कि बुराई पर अच्छाई की जीत हर हाल में होता है।

दशहरा का महत्व:

दशहरा पर्व को विजयादशमी भी कहा जाता है। क्योंकि ऐसा मानते हैं कि इसी समय मां दुर्गा ने महिषासुर के साथ घोर युद्ध किया था और अंततः दसवें दिन उसका वध कर दिया था। दस दिनों तक चलने वाले युद्ध में विजय प्राप्ति के कारण इस पर्व को विजयादशमी भी कहा जाता है। इसी कारण इस समय नौ दिनों तक देवी दुर्गा का पूजन करते हैं और दसवें दिन विजय का उल्लास मनाते हैं।

यह त्यौहार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को पड़ता है।

चूंकि इस युद्ध में शस्त्रों  का बहुत उपयोग किया था। विभिन्न प्रकार के आयुध इस्तेमाल किए गए थे इसलिए उनके महत्त्व को समझते हुए आज के दिन शस्त्र पूजा का भी विधान है।

कहते हैं कि युद्ध में जाने से पूर्व भगवान राम ने शमी के वृक्ष की भी पूजा की थी। इसलिए उस प्रतीक के रुप में लोग आज शमी वृक्ष का भी पूजन करते हैं।

सेना के जवानों में भी सीमा सुरक्षा हेतु दशहरा के दिन शस्त्र पूजन का विधान है।

दशहरा पूजन विधिः 

शस्त्र पूजन के लिए, सुबह स्नान ध्यान आदि करके शस्त्रों की गंगाजल से सफाई कर लें और पूजा मुहूर्त में  साफ वस्त्र बिछाकर सभी शस्त्रों को उसपर रख लें। उनके ऊपर दशहरा पूजा सामिग्री अक्षत, पुष्प, रोली, अक्षत, चंदन इत्यादि छिड़क कर धूप दीप से विधि विधान से पूजन करें।

दशहरे का पूजन दोपहर के समय किया जाता है। अपने पूजा स्थल में भगवान राम की प्रतिमा के साथ ही साथ मां दुर्गा की प्रतिमा को भी स्थापित करें।

उनके मंत्रों के साथ साथ विजय (अपराजिता ) का मंत्र भी लेना चाहिए। इससे स्वयं के भी विजय भाव में वृद्धि होती है।

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